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अहल-ए-दुनिया देखते हैं कितनी हैरानी के साथ / 'महताब' हैदर नक़वी
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अहल-ए-दुनिया देखते हैं कितनी हैरानी के साथ
ज़िंदगी हम ने बसर कर ली है नादानी के साथ
इक तमन्नाओं का बहर-ए-बे-कराँ था और हम
कश्ती-ए-जाँ को बचा लाए हैं आसानी के साथ
अब किसे दिल के धड़कने की सदाएँ याद हैं
ये भी हँगामा गया इस घर की वीरानी के साथ
ऐ हवा तू ने तो सारे मारके सर कर लिए
सुब्ह-ए-फ़र्दा पास बैठी है पशेमानी के साथ
दश्त-ए-वहशत से भला करता है आँखें चार कौन
शहर बढ़ते जा रहे हैं अपनी उर्यानी के साथ
तू नहीं आता न आ ऐ दोस्त अब तेरी तरह
हम भी चल निकले हैं अपने दुश्मन-ए-जानी के साथ