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अहल-ए-नज़र की आँख में हुस्न की आबरू नहीं / 'रशीद' रामपुरी
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अहल-ए-नज़र की आँख में हुस्न की आबरू नहीं
यानी ये गुल है काग़ज़ी रंग है जिस में बू नहीं
दिल को न रंज दीजिए शौक़ से ज़ब्ह कीजिए
आप की तेग़ तेग़ है मेरा गुलू गुलू नहीं
दुश्मन ओ दोस्त के लिए चाहिए शुक्र-ए-तेग-ए-नाज़
कौन है क़त्ल-गाह में आज जो सुर्ख़-रू नहीं
आप से दिल लगाऊँ क्यूँ जौर ओ सितम उठाऊँ क्यूँ
अब तो सुकूँ से काम है दर्द की जुस्तुजू नहीं
बज़्म-ए-सुख़न में ऐ ‘रशीद’ नग़मे से मुझ को काम क्या
शाइर-ए-शोख़-फ़िक्र हूँ मुतरिब-ए-ख़ुश-गुलू नहीं