भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अहसास से / प्रेमशंकर रघुवंशी
Kavita Kosh से
ना तो
मेरी आत्मा का
रूप हो
ना कर सकता
सर्वस्व
समर्पित
फिर भी
अधूरा हूँ
तेरे बिन
पूरा हूँ ख़ुद में
अहसास से
तेरे !!