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अह्द−ए−माज़ी इस क़दर छाया हुआ है आँख में / अमित गोस्वामी

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अह्द−ए−माज़ी1 इस क़दर छाया हुआ है आँख में
अक्स2 मुस्तक़बिल3 का ही धुँधला गया है आँख में

हर तरफ़ बस तिश्नगी है, ख़ुश्क सहरा, ख़ुश्क लब
मेरे हिस्से था जो पानी आ गया है आँख में

आ भी जाओ! कब तलक ये झूठ लोगों से कहूँ?
कुछ नही! यूँ ही ज़रा तिनका गिरा है आँख में

बूँद जो पलकों पे ठहरी है, बस इक तम्हीद है
फट पड़ेगा, एक सैलाब−ए−बला है आँख में

एक तो तन्हाई, उस पे तेरी यादों का हुजूम
शाम से फिर ज़ख़्म फ़ुरक़त का हरा है आँख में


1.बीता हुआ दौर 2.चित्र 3.भविष्य