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आँसू हैं / गोपीकृष्ण 'गोपेश'

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आंसू हैं ये, बह जाएँगे !

नया दर्द है, नई आह है,
नया आंसुओं का प्रवाह है,
सीधी नगरी को जाती है,
लेकिन बीहड़, विकट राह है !
तृण पर चोट पड़ी है घन की,
सहते-सहते सह जाएँगे !
आंसू हैं ये, बह जाएँगे !!

तुम न दया इनपर दिखलाओ,
तुम न पोंछने इनको आओ,
सम्भव हो, यदि बढ़ा सको तो
वश भर पीड़ा और बढ़ाओ,
रोने दो दिल हलका होगा,
हम रोकर दिल बहलाएँगे !
आंसू हैं ये, बह जाएँगे !

तुम न रहोगे, ये न रहेंगे,
तुम न सुनोगे, ये न कहेंगे,
इनका ही दिल रह जाए क्यों,
बह लेने दो, अब न बहेंगे,
आंसू के नयनों में कल से
केवल पत्थर रह जाएँगे !
आंसू हैं ये, बह जाएँगे !