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आंख में उगती मूंछें / एम० के० मधु
Kavita Kosh से
एक परी की तरह
वह रोज़ रूबरू होती है
धूप और छांव के गोले
पैरों से उड़ाती हुई
देखते-देखते
उसकी रूपहली आंखों में
कड़ी-कड़ी मूंछें उगने लगती हैं
एक औघड़ की तरह
मैं तटस्थ भाव में
अंधेरा ओढ़ लेता हूं
उसकी मूंछें मेरे अंधेरे से
ज़्यादा स्याह हो जाती हैं
एक हिरण की तलाश करने लगता हूं
ताकि अंधेरे से जल्द बाहर निकल सकूं।