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आईना रख के सामने बैठा न कीजिये / सिया सचदेव
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आईना रख के सामने बैठा न कीजिये
अपने को इतने गौर से देखा न कीजिये
यादों की ज़िंदगी का भरोसा न कीजिये
बिस्तर को आँसुवों से भिगोया न कीजिये
इस रोग का इलाज़ नहीं है कहीं जनाब
पहरों किसी की सोच में डूबा न कीजिये
एहसास यूँ करेंगे तो दिल पे बन आएगी
ऐसे किसी के वास्ते रोया न कीजिये
कितने नक़ाब ओढ़े है हर आदमी यहाँ
आइना लेके शहर में घूमा न कीजिये
बरसों के बाद खुशियों की दस्तक सुनाई दी
इस घर में ग़म का कोई भी चर्चा न कीजिये
तंग आ गए है आपकी इन बंदिशों से हम
ऐसा न कीजिये कभी वैसा न कीजिये