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आकाश सें भगवती, पापी कंस से कहथीं / भवप्रीतानन्द ओझा
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झूमर (भादुरिया)
आकाश सें भगवती, पापी कंस से कहथीं
दिन राति तोर काहे ई कुमतिया
कि दिन राति
मोरा मारके नहीं केकरो शक्तिया
कि मोरा मारेक्
तोरा करेले संहार, हरि लेला अवतार
गोकुला में, खेले पलना पेॅ सुतिया
कि गोकुला में
कही हँसी खल-खल, गेली माता विन्ध्याचल
बसी गेली जोगमाया के मूरतिया
कि बसी गेली
भवप्रीता तहाँ जाय, चरणे मस्तक नाय
”गेंदा माला“ सिरें खसल तुरतिया
कि गेंदा माला।