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आकाश होने का चलन / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र
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भाई मानें
इन दिनों आकाश होने का चलन है
लोग खुश हैं
आप धरती की
दुहाई दे रहे हैं
और धरती चुप पड़ी है
भाई, सपनों के शहर की
नई पीढ़ी
उधर उड़ने को खड़ी है
और उलटी
गिनतियों का हो रहा घर-घर भजन है
लोग खुश हैं
वह नदी भी मर चुकी है
आप जिसका
ज़िक्र करते नहीं थकते
हो गई इतिहास है वह
आप हैं
जिस नेह-रितु की बाट तकते
पीढ़ियों से
हर तरफ बस हो रहा लंका-दहन है
लोग खुश हैं
ख़ामखा-ही
आप हैं पीछे पड़े
पिछले समय के
वक्त का हैं यह करिश्मा
सूर्यकुल में
जन्म होता जय-विजय का
स्वर्ग में
इस धरा से भी अधिक अँधियारा घना है
लोग खुश हैं