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आग / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा

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मैं धुआँ नहीं कि तुम उड़ाओगे
और तुम्हारी एक फूँक से
उड़ जाऊँगी

मैं आग हूँ

मैं तुम्हारी लगाई हुई आग हूँ
पर तुम्हारे बुझाए अब बुझुँगी नहीं

तुम्हारे कहने से पानी नहीं हो जाऊँगी
आग हूँ तो आग ही रहूँगी