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आजकल माँ / विमलेश त्रिपाठी
Kavita Kosh से
आजकल माँ के
चेहरे से
एक सूखती हुई नदी की
भाप छुटती है
ताप बढ़ रहा है
धीरे-धीरे
बस
बर्फानी चोटियाँ
पिघलतीं नहीं