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आज तुमसे पूछती ये फिर तुम्हारी बेटियाँ हैं / रंजना वर्मा

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आज तुमसे पूछती ये फिर तुम्हारी बेटियाँ हैं।
माँ के' आंचल में छिपी प्यारी दुलारी बेटियाँ हैं॥

क्यों इन्हें यों हेय समझा पुत्र-सुत के सामने था
क्यों नहीं ये बन सकीं घर भर की' प्यारी बेटियाँ हैं॥

चाह रहती है हमेशा क्यों सभी को मात्र सुत की
क्यों सदा अपमान सहती ये तुम्हारी बेटियाँ हैं॥

जन्म पुत्री का हुआ सुन कर दुखी क्यों हो गये हो
अंश क्या होतीं नहीं ये भी तुम्हारी बेटियाँ हैं॥

पुत्र जीवन भर कुंवारा हो नहीं कुछ हर्ज होता
पर नज़र में क्यों खटक जाती तुम्हारी बेटियाँ हैं॥

फ़र्ज़ हैं सारे निभातीं मातृ गृह ससुराल के भी
चंद सिक्कों के लिये जातीं जलायी बेटियाँ हैं॥

शौक से ही ये निभाती सारी' जिम्मेदारियों को
पर कही जातीं हमेशा से बिचारी बेटियाँ हैं॥