धीरता बनते हृदय की, नयन के विश्वास होते!
रात यह काली भयावन, गूँजता झनझन् भयस्वन,
रो रहा अम्बर अकेला, रो रहे बिजली बिना घन;
क्यों बिलखते प्राण, प्राणों में बसे तुम काश होते!
साधना के अग्निपथ पर किस तरह अविचल चरण धर
चल रही मेरी जवानी, फल रहे फोले निरन्तर;
देखते अपने प्रणय का नाश से विन्यास होते!
यन्त्रणा ही राग में है, वेदना अनुराग में है,
यह न जानो, जानता था मैं नहीं, क्या भाग में है;
जानकर चलता चला हूँ, आग में अन्तर जुगोते!