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आज बस खौफ़ के नज़ारे हैं / बाबा बैद्यनाथ झा

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आज बस खौफ़ के नज़ारे हैं।
डूबते भाग्य के सितारे हैं।

बीच में डूब है रही किश्ती,
दीखते दूर सब किनारे हैं।

रोग के काल में कहें कैसे,
मेहमां आप सा पधारे हैं?

टूटते जा रहे सभी रिश्ते,
जा रहे दूर सब हमारे हैं।

एक साथी नहीं बचा ‘बाबा’
हम बचे ईश के सहारे हैं।