आज रात बीती / आत्म-रति तेरे लिये / रामस्वरूप ‘सिन्दूर’
आज रात बीती तेरी तस्वीर बनाने में!
तस्वीर बनाने में, कि एक जंजीर बनाने में!
चितवन में भर दिये रंग
गहरे सम्मोहन के,
अधरों पर धर दिये गीत
पूरे अपने मन के,
मन न लगा चंचल यौवन, गम्भीर बनाने में!
गम्भीर बनाने में, कि झील का नीर बनाने में!
केशों में गुम्फित कर दीं
उँगलियाँ कला-वाली,
तन्मयता ने चुम्बन-वाली
माल गले डाली,
तन काँपा भाल पर एक शमशीर बनाने में!
शमशीर बनाने में, कि एक तूणीर बनाने में!
कानों में घोल दी प्यार-
की मुखर-मौन वाणी,
हाथों की रेखाओं में
की अंकित नादानी,
साथ रहे तारे तेरी तक़दीर बनाने में!
तक़दीर बनाने में, कि अदृश प्राचीर बनाने में!
मन पर खींची सकल सृष्टि-
व्यापी संयोग-कथा,
प्राणों पर लिख दी संवेदन-
वाली करुण व्यथा,
कलरव जाग उठा तेरी जागीर बनाने में!
जागीर बनाने में, कि आदि कश्मीर बनाने में!