भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आदमक़द होना मुश्किल है / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नये समय में
आदमक़द होना मुश्किल है
 
बौने होकर बिकने आये
लोग हाट में
खिड़की दरवाज़े सब छोटे
नई लाट में
 
ऊँची हो दीवार
यही सबकी मंजिल है
 
छत नीची है
खड़े कहाँ हों लोग अकड़कर
सब कोशिश में चढ़ने की
आकाश पकड़कर
 
इस कोशिश में
अगला बच्चा भी शामिल है
 
सड़क-दर-सड़क
सपनों की चल रही ठगी है
बौना होने की
बस्ती में होड़ लगी है
 
जो जितना छोटा
उतना ही वह क़ाबिल है