भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आपके पास / ज़िन्दगी को मैंने थामा बहुत / पद्मजा शर्मा
Kavita Kosh से
जब मैं कहती हूँ कि मैं निराश हूँ
तब मैं निराशा के पास कम
आशा के साथ ज्य़ादा होती हूँ
जब मैं कहती हूँ कि मैं खुश हूँ
तो असल में मैं खुश दिखती हूँ
होती नहीं हूँ
जबकि खुश रहना चाहती हूँ