Last modified on 15 जून 2011, at 07:15

आप, हम, और कुछ भी नहीं! / गुलाब खंडेलवाल


आप, हम और कुछ भी नहीं!
सब वहम, और कुछ भी नहीं

खुलके बरसे तो काली घटा
आँखें नम, और कुछ भी नहीं!

मर भी जाएँ तो जाएँ कहाँ!
यह भरम, और कुछ भी. नहीं

दम न आशा कहीं तोड़ दे
दम ही दम और कुछ भी नहीं

लौ कहीं और भी कम न हो
और कम, और कुछ भी नहीं

आये, बैठे, उठे, चल दिए
बेरहम! और कुछ भी नहीं!

उनके अलबम में सूखे गुलाब
आज हम और कुछ भी नहीं