भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आये थे जो बड़े ही ताव के साथ / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आये थे जो बड़े ही ताव के साथ
बह गए वक्त के बहाव के साथ

बात तो कुछ न हो सकी उनसे
हिचकियाँ बढ़ गईं दबाव के साथ

उनकी अलकें सँवारते हमने
काट दी ज़िन्दगी अभाव के साथ

हम किनारे से दूर जा न सके
एक चितवन बँधी थी नाव के साथ

सर हथेली पे लेके बैठे हैं
कुछ कहे तो कोई लगाव के साथ

हमसे मिलिए तो आइने की तरह
प्यार टिकता नहीं दुराव के साथ

और क्या दाँव पर लगायें अब!
लग चुका सब तो पहले दाँव के साथ

प्यार काँटों में ढूँढ़ते हैं गुलाब
कहाँ जायेंगे इस स्वभाव के साथ!