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आरति जग पावन पुरान की / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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(आरती ध्वनि)
आरति जग पावन पुरान की।
मातृ-चरित विचित्र-खान की॥
देवि-भागवत अतिशय सुन्दर।
परमहंस मुनि-जन-मन-सुखकर॥
विमल ज्ञान-रवि मोह-तिमिर-हर।
परम मधुर सुषमा-वितान की॥-१॥-आरती०
कलि-कल्मष-विष-विषम-निवारिणि।
युगपत् भोग-सुयोग-प्रसारिणि॥
परमानन्द-सुधा-विस्तारिणि।
सुमहौषध अज्ञान-हान की॥-२॥-आरती०
संतत सकल सुमंगलदायिनि।
समति सद्गति मुक्ति-प्रदायिनि॥
नूतन नित्य विभूति-विधायिनि।
परमप्रभा परतव-ज्ञान की॥-३॥-आरती०
आर्ति-अशान्ति-भ्रान्ति-भय-भञ्जनि।
पाप-ताप-माया-मद-गञ्जनि॥
शुचि सेवक-मन-मानस-रञ्जनि।
लीला-रस मधुमय निधान की॥-४॥-आरती०