आरति परम साम्ब-शंकर की / हनुमानप्रसाद पोद्दार
(राग देश-ताल कहरवा)
आरति परम साब-शंकर की।
सत्य सनातन शिव शुभकर की॥
आदि, अनादि, अनन्त, अनामय।
अज, अविनाशी, अकल, कलामय।
सर्वरहित नित सर्व-उरालय।
मस्तक सुरसरिधर शशिधर की।
आरति परम साब-शंकर की॥
कर्ता, भर्ता, जगसंहारी।
ब्रह्मात्त, विष्णु, रुद्र तनुधारी।
सर्वविकाररूप अविकारी।
अग-जग-पालक प्रलयंकर की।
आरति परम साब-शंकर की॥
विश्वातीत विश्वगत स्वामी।
द्रष्टस्न साक्षी अन्तर्यामी।
काम-काल सब-जग-हित कामी।
अनघ-स्वरूप सकल अघहर की।
आरति परम साब-शंकर की॥
मुनि-मन-हरण मधुर शुचि सुंदर।
अति कमनीय रूप सुषमावर।
दिव्याबर रत्नाभूषणधर।
सर्व-नयन-मन-हर सुखकर की।
आरति परम साब-शंकर की॥
विकट कराल पञ्चमुखधारी।
मुण्डमाल विषधर भयकारी।
हाथ कपाल श्मशान-विहारी।
वेष अमंगल मंगलकर की।
आरति परम साब-शंकर की॥
भोगी, योगी, ध्यानी, ज्ञानी।
जग-अभिमानाधार अमानी।
आशुतोष अति औढरदानी।
दैन्य-दुरित-दुर्गतिहर हर की !
आरति परम साब-शंकर की॥