भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आरति श्रीजनक-दुलारी की / हनुमानप्रसाद पोद्दार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आरती श्रीजानकीजी
आरति श्रीजनक-दुलारी की।
 सीताजी रघुवर-प्यारी की॥-टेक॥
   जगत-जननि जगकी विस्तारिणि,
   नित्य सत्य साकेञ्त-बिहारिणि,
   परम दयामयि दीनोद्धारिणि,
     मैया भक्तञ्न-हितकारी की॥-सीताजी०॥
   सती-शिरोमणि, पति-हितकारिणि,
   पति-सेवा हित वन-वन-चारिणि,
   पति-हित पति-वियोग-स्वीकारिणि,
     त्याग-धर्म-मूरति-धारी की॥-सीताजी०॥
 बिमल-कीर्ति सब लोकन छायी,
 नाम लेत पावन मति आयी,
 सुमिरत कटत कष्ट दुखदायी,
 शरणागत-जन-भय-हारी की॥-सीताजी०॥