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आर-पार / ओक्ताविओ पाज़ / उज्ज्वल भट्टाचार्य

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दिन का पन्ना खोलते हुए
लिखता हूँ
तुम्हारी पलकें जो कहती हैं ।

तुम्हारे अन्दर आता हूँ,
अन्धेरे की सच्चाई के बीच ।
मुझे अन्धेरे के सबूत चाहिए, मुझे
पीनी है काली शराब :
अपनी आँखें निकालकर मसल डालता हूँ ।

रात की एक बून्द
तुम्हारे सीने की उभार पर :
गुलनार की पहेली ।

अपनी आँखें बन्द कर
खोलता हूँ तुम्हारी आँखों के बीच ।

अपने गहरे लाल बिस्तर पर
हमेशा जगी हुई :
तुम्हारी भीगी जीभ ।

फ़व्वारे ही फ़व्वारे
तुम्हारी नसों के बग़ीचे में ।

ख़ून का नक़ाब पहनकर
तुम्हारी सोच के पार जाता हूँ :
सबकुछ भूलते हुए
ज़िन्दगी के उस पार ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य
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