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आलोर अमल कमल खानि के फुटाले
नील आकाशेर घूम छुटाले ।।
आलोकित अमल कमल किसने ये खिला दिया
इस नीले अम्बर को धीरे से जगा दिया ।
पंख खोल बाहर को आईं चिन्ताएँ—
उसी कमल-पथ पे ये किसने जुटाईं।
वीणा बज उठी शरत् वाणी की आज
उसका वह मधुर राग शेपाली लाई ।।
मतवाली तभी हवा देखो वह आई,
धानों के हरे खेत फिरती लहराई ।।
मर्मर ध्वनि अरे तभी वन में है छाई—
किसकी सुधि प्राणों में उसके गहराई ।।
मूल बांगला से अनुवाद : प्रयाग शुक्ल
('गीत पंचशती' में 'प्रकृति' के अन्तर्गत 81 वीं गीत-संख्या के रूप में संकलित)