भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आल्हा ऊदल / भाग 14 / भोजपुरी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाम रुदल के सुन गैले सोनवा बड़ मंड्गन होय जाय
जे बर हिछलीं सिब मंदिर में से बर माँगन भेल हमार
एतो बारता है सोनवा के रुदल के सुनीं हवाल
घोड़ा बेनुलिया पर बघ रुदल घोड़ा हन्सा पर डेबा बीर
घोड़ा उड़ावल बघ रुदल सिब मंदिर में पहुँचल जाय
घोड़ा बाँध दे सिब फाटक में रुदल सिब मंदिर में गैल समाय
पड़लि नजरिया है सोनवा के रुदल पड़ गैल दीठ
भागल सोनवा अण्डल खिरकी पर पहुँचल जाय
सोने पलंगिया बिछवौली सोने के मढ़वा देल बिछवाय
सात गलैचा के उपर रुदल के देल बैठाय
हाथ जोड़ के सोनवा बोलल बबुआ रुदल के बलि जाओ
कहवाँ बेटी ऐसन जामल जेकरा पर बँधलव फाँड़
बोले राजा बघ रुदल भौजी सोनवा के बलि जाओं
बारह वरिसवा बित गैल भैया रह गैल बार कुँआर
किला तूड़ दों नैना गढ़ के सोनवा के करों बियाह
एतनी बोली रानी सोनवा सुन गैल सोनवा बड़ मंड्गन होय जाय
भुखल सिपाही मोर देवर है इन्ह के भोजन देब बनाय
दूध मँगौली गैया के खोआ खाँड़ देल बनवाय
जेंइ लव जेंइ लव बाबू रुदल एहि जीबन के आस
कड़खा बोली रुदल बोलल भौजी सोनवा अरजी मान हमार
किरिया खैलीं मोहबा गढ़ में अब ना अन गराहों पान