आशाओं की फसल कभी बेकार नहीं होती / रंजना वर्मा
आशाओं की फसल कभी बेकार नहीं होती।
अपने आँगन में कोई दीवार नहीं होती॥
स्वयं खिवैया बन कर मोहन पर लगाता है
बीच समंदर कश्ती में पतवार नहीं होती॥
सभी समस्याएँ घहर की घहर में हल होती है
किसी बाहरी की मर्जी स्वीकार नहीं होती॥
दशरथ माँझी पर्वत काट ब हा देता गंगा
जो मेहनत करते हैं उनकी हार नहीं होती॥
लंका से हिमगिरि जा हनुमत औषधि लाते हैं
स्वामिभक्त को दर्शन की दरकार नहीं होती॥
आँखों के गलियारों में सज जाते हैं सपने
सत्य अहिंसा की खेती तैयार नहीं होती॥
दर्द सभी का है दुख देता सभी जानते ये
सुनी नहीं जो जाये करुण पुकार नहीं होती॥
कजारो ओर बने हैं कमरे आँगन मध्य बना
सुख से रहने वालों में तक़रार नहीं होती॥
नहीं बीतता है जीवन सब का सुविधाओं में
किस नदिया के बीच कहीं मझधार नहीं होती॥