आ गया ऋतुराज फिर मौसम सुहाना आ गया / रंजना वर्मा
आ गया ऋतुराज फिर मौसम सुहाना आ गया
वृन्त पर लटकी कली को मुस्कुराना आ गया
खुशबुएँ ले कर हवा की टोलियां लो चल पड़ीं
धूप को भी बादलों में मुँह छिपाना आ गया
आम्र मंजरियाँ टिकोरों में बदलने जब लगीं
डालियों को नम्रता से सर झुकना आ गया
कोयलों की कूक से हैं गूँजती अमराइयाँ
पाटलों को तितलियों का दिल लुभाना आ गया
गुलमुहर के लाल फूलों से हृदय मोहित बहुत
टेसुओं को आग जंगल में लगाना आ गया
खोल सुमनों ने सुधा के पात्र सम्मुख रख दिये
मुग्ध भ्रमरों को प्रणय के गीत गाना आ गया
है गगन निर्मल सितारे जगमगाते देख कर
जुगनुओं को भी धरा के टिमटिमाना आ गया
'पी कहाँ ' कहता पपीहा टेरता है हर तरफ़
विरहिणी सा मीत को उस को बुलाना आ गया
हो नहीं तुम पर बहारें तो सदा आती रहीं
याद में फिर से वही गुज़रा ज़माना आ गया