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इक महल ख़्वाब का आँखों में सजाया हमने / सिया सचदेव

इक महल ख़्वाब का आँखों में सजाया हमने
ज़िन्दगी तुझको तो बस दूर में देखा हमने

शिकवा-ए-दिल भी करूँ तुझसे बता कैसे करूँ
खो दिया ख़ुद को मगर तुझको न पाया हमने

रिश्ता-ए-दर्द समझ कर ही निभा लेना था
ज़िन्दगी तुझसे तो हर तरह निभाया हमने

ढूँढ़ती रहती है वीरान निगाहें तुझको
इस ज़माने में कोई तुझसा न पाया हमने

उनकी बख्शी हुई सौगात समझ कर ऐ सिया
अपनी तन्हाई को सीने से लगाया हमने