भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इतना क्या कम है ? / शलभ श्रीराम सिंह
Kavita Kosh से
फूलों को खिलने में
मदद की तुमने
प्रकृति तुम्हारी शुक्रगुज़ार हुई
अन्धेरे को
एकांत का संगीत दिया तुमने
सपने कृतज्ञता से नत-मस्तक हुए तुम्हारे आगे
जीवन को
जीवन की तरह जी लिया तुमने
समय ने व्यक्त किया तुम्हारे प्रति आभार ,
तुम ही तुम रही हर जगह , हर बार
इतना क्या कम है ?
रचनाकाल : 1992 मसोढ़ा