भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इधर हैं रीते पियाले इधर भी एक नज़र / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
इधर हैं रीते पियाले इधर भी एक नज़र I
पड़े हैं जान के लाले इधर भी एक नज़र II
सुना है शेवा तेरा नश्तर-आज़माई है,
हरे हैं दिल के ये छाले इधर भी एक नज़र I
निगाहे-बद के तिलिस्मों को तोड़ना है तुझे,
हमारे दिल की दुआ ले इधर भी एक नज़र I
हरेक रग पे यहाँ ज़ख़्म का शिगूफ़ा है,
बहार चाहनेवाले इधर भी एक नज़र I
सुना है लोहे को छूकर बनाए है सोना,
ख़ुदारा काश वो डाले इधर भी एक नज़र I
उधर हैं अहले-हवस अहले-जौर सफ़बस्ता,
इधर खड़े हैं जियाले इधर भी एक नज़र I
हज़ार सोज़ बुरे हैं हक़ीर-ओ-नाक़िस हैं,
हैं तेरे चाहनेवाले इधर भी एक नज़र II
06.02.1990