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इन्द्रधनुष छत पर फैलाये हैं / सुनो तथागत / कुमार रवींद्र

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रौनक है पड़ोस के घर में
बच्चे आये हैं
 
देख रहे दीवार-पार हम
नये-उगे सूरज
परियाँ-बौनों के किस्से भी
और कई अचरज
 
इधर हमारे गमले के
गुलाब मुरझाये हैं
 
बच्चों की आँखें हैं
या फिर आसमान नीले
इधर हमारी आँखों में हैं
पर्वत बर्फीले
 
घर-भर में बंजर सपनों के
फैले साये हैं
 
हँसी पड़ोसी के आँगन की
हमको खलती है
रात-हुए, हाँ, वही हँसी
यादों में पलती है
 
इन्द्रधनुष भी बच्चों ने
छत पर फैलाये हैं