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इन दिनों / प्रेमशंकर रघुवंशी

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कविता लिखना
बहुत ही कठिन हो गया है इन दिनों
इन दिनों कविता में जीना तो
और भी कठिन है।
जब छीने जा रहे हों शब्दों के अर्थ
गिरफ्तार की जा रही हों भावनाएँ
सरे आम कत्ल हो रही हों कल्पनाएँ
तब प्यार को सहेजे रखना
बहुत ही कठिन हो गया है इन दिनों
इन दिनों प्यार में जीना तो
और भी कठिन है
जब विश्व सुंदरियों की आंगिक चेष्टाओं से
व्यापारिक संधियाँ तय होती हों
तय होती हों नए समीकरणों के ज़रिए
सांस्कृतिक परिणितियाँ
तब सौंदर्य को पीना
बहुत ही कठिन हो गया है इन दिनों
इन दिनों सौंदर्य में जीना तो
और भी कठिन है
बिना पूर्व प्रश्न के जब
उत्तर-आधुनिकता मुखर होने लगे
और पूँजी के रंग रोगन से
विश्व का नया नक्शा बनाया जाने लगे
तब मानव अधिकार की बातें करना
बहुत ही कठिन हो गया है इन दिनों
इन दिनों मानव अधिकार में जीना तो
और भी कठिन है
इन दिनों कविता न लिखकर
कविता को बचाये रखना
ज़रूरी है
ज़रूरी है, आदमी की उम्मीदों को
बचाए रखना, इन दिनों।