Last modified on 3 अप्रैल 2018, at 19:27

इब्तदा अच्छी न हो तो इन्तेहा का क्या करें / रंजना वर्मा

इब्तदा अच्छी न हो तो इंतहा का क्या करें
इस खिज़ा के दौर में बागे सबा का क्या करें

बेबसी महरूमियाँ बिखरी हुई हर सिम्त हैं
मर्ज़ हो जब ला इलाज़ी तो दवा का क्या करें

घाटियाँ गहरी हैं बेहद और चीखें बेहिसाब
कान तँक पहुँची नहीं जो उस सदा का क्या करें

बदगुमानी ने किया महरूम उस को प्यार से
काम जो आयी नहीं ऐसी वफ़ा का क्या करें

की मशक्क़त लाख पर मिलती रहीं नाक़ामियाँ
जो न बर आयी कभी ऐसी दुआ का क्या करें

रुख पे पर्दा डाल कर करना इशारे इस तरह
बेहयाई सी लगे ऐसी हया का क्या करें

इश्क़ से लबरेज़ इक प्याला मुकद्दर से मिला
जो उठा कर ले गया स् साकिया का क्या करें