भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
इमसाल परिन्दों से तक़्सीर नहीं होगी / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
इमसाल परिन्दों से तक़्सीर नहीं होगी ।
इस बार नशेमन की तामीर नहीं होगी ।।
इस बार तेरा ख़ाना आबाद अजब होगा
दीवाने बहुत होंगे ज़ंजीर नहीं होगी ।
मैदाने-अमल सारे कुश्तों पे खुला होगा
हाँ कारे-नुमायाँ में तक़रीर नहीं होगी ।
हौले से तग़य्युर का एक जाम उठा लेना
इस मर्तबा मस्तों से ताख़ीर नहीं होगी ।
इन बेनवां हाथों की तौफ़ीक़ न कम समझें
क्या जानिए कल इनमें शमशीर नहीं होगी ।।
13-1-1988