भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

इमसाल परिन्दों से तक़्सीर नहीं होगी / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इमसाल परिन्दों से तक़्सीर नहीं होगी ।
इस बार नशेमन की तामीर नहीं होगी ।।

इस बार तेरा ख़ाना आबाद अजब होगा
दीवाने बहुत होंगे ज़ंजीर नहीं होगी ।

मैदाने-अमल सारे कुश्तों पे खुला होगा
हाँ कारे-नुमायाँ में तक़रीर नहीं होगी ।

हौले से तग़य्युर का एक जाम उठा लेना
इस मर्तबा मस्तों से ताख़ीर नहीं होगी ।

इन बेनवां हाथों की तौफ़ीक़ न कम समझें
क्या जानिए कल इनमें शमशीर नहीं होगी ।।

13-1-1988