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इश्क़े-बुतां को जी का जंजाल कर लिया है / हसरत मोहानी

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इश्क़े-बुताँ को जी का जंजाल कर लिया है
आख़िर में मैंने अपना क्या हाल कर लिया है

संजीदा<ref >गम्भीर</ref> बन के बैठो अब क्यों न तुम कि पहले
अच्छी तरह से मुझको पामाल<ref >पद-दलित</ref> कर लिया है

नादिम<ref >लज्जित</ref> हूँ जान देकर, आँखों को तूने ज़ालिम
रो-रो के बाद मेरे क्यों लाल कर लिया है

शब्दार्थ
<references/>