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इस तरह जज़्ब हुआ है मेरा साया मुझ में / सिया सचदेव
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इस तरह जज़्ब हुआ है मेरा साया मुझ में
ऐसा लगता है की कुछ ढूँढ़ रहा है मुझ में
मैंने हर हाल में जीने का हुनर सीखा है
रहबरी के लिए वो नूरे ख़ुदा है मुझ में
वक़्त की धूप ने मुरझा के रख दिया हैं उसे
फूल उम्मीद का जिस वक़्त खिला है मुझ में
शोर इतना के सुनाई नहीं देता मुझको
एक मुद्दत से कोई नग्मासरा है मुझ में
राह की धूप भी लगने लगी ठंडी ठंडी
छाँव बन के वो कहीं आन बसा है मुझ में
मेरे अश्आर मेरा राज़ अयाँ कर देंगे
कब से इक प्यार का तूफ़ान छुपा है मुझ में
मेरा बस चलता है ख़्वाबों पे न यादों पे सिया
इक मज़बूर सा इंसां छुपा है मुझ में