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इस तरह दुनिया सुन्दर हुई थी / सविता सिंह
Kavita Kosh से
शाम ढल चुकी थी
रात पसार रही थी अपना आँचल
आसमान से नीला प्रकाश झर रहा था
सामने का एक पेड़ उस में नहा रहा था
तभी उसकी एक डाल हौले-से हिली थी
सम्भव था उसे हवा ने हिलाया हो
या किसी चिड़िया ने खुजलाई हो वहाँ बैठ कर अपनी गरदन
या फिर बदली हो जगह
गई हो एक डाल से कूदकर दूसरी डाल पर
सम्भव था इससे दुनिया सुन्दर हुई हो
उदास किन्हीं आँखों में जीवन की चमक लौटी हो