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इस से बढ़ कर और भला ग़म क्या होगा / अजय अज्ञात

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इस से बढ़ कर और भला ग़म क्या होगा
उम्मीदों ने तोड़ दिया दम क्या होगा

पगपग पर हैं आज मुखासिम क्या होगा
होता कत्लेआम मुहर्रम क्या होगा

चारागर की आम दवाई से मेरे
ज़ख़़्मी दिल का दर्द भला कम क्या होगा

पल भर को भी नींद नहीं आती मुझ को
सोचूं सारी रात सहरदम क्या होगा

तुम हो मेरे साथ तो रुत मस्तानी है
बिन तेरे दिलदार ये मौसम क्या होगा

चिंता है फुटपाथ पे सोने वालों की
होगी जब बरसात झमाझम क्या होगा

सोच रही औलाद वसीयत से पहले
साँस गई जो बूढे की थम क्या होगा

सुनते ही आवाज शहदसा घुलता है
छेड़ोगे जब तान तो हमदम क्या होगा