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ईमान बिक गया है नीयत बदल गई है / मृदुला झा
Kavita Kosh से
देखो जिसे उसी की तबीयत बदल गई है।
रहती फिकर यही बस खुशहाल हों सभी जन,
बेकार की ये जिद है कुरबत बदल गई है।
क्यों हो गए बेगाने जो थे कभी हमारे,
जीवन के फलसफे की फितरत बदल गई है।
पथरा गई निगाहें अपनों की राह तकते,
मन का भरम ये टूटा आदत बदल गई है।
आना नहीं दुबारा इस अंजुमन में अब तो,
जी भर गया हमारा चाहत बदल गई है।