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ई अन्हार में हेलऽ दा? / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
सब बिखधर के पकड़-पकड़ के
खौलल जल में मेलऽ दा
बेलना लेके बेलऽ दा
पकड़ के बाहर ठेलऽ दा
फन फइला के रात-दिना ई
अदमीपन के गरस लेलक
तक्षक गहुमन सन अदमी के
लगा घात ई डंस लेलक
ई बिखधर के नाथ-नाथ के
फन चढ़ि हमरा खेलऽ दा
मनके फटल दरार में भरबइ
शुभ विचार के मोती
केक्कर हइ अउकात
कि हम्मर छिनतइ आके रोटी
हरियर घाव चोखा रहलइ
अंतिम जलन के झेलऽ दा
नये रोशनी से जगमग
होतइ अब सउँसे दुनिया
न´ रहतइ काहिल कदराहा
लम्पट-लम्पट खुनियाँ
शांति सिमाना खूंट के हमरा
डंड बैठकी पेलऽ दा।