भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
उतरल अगहन के महिनमा / जयराम दरवेशपुरी
Kavita Kosh से
जुड़ा जा हइ हो देख-देख मोर नयनमां
उतरल अगहन के महिनमां
छुट के पथरिया में लगलइ कटनियाँ
दीनी करइ बाले बच्चे मिल के कमिनियाँ
सोझ-सोझ खेत में सोभइ पतनियाँ
अरिया पर मगन झूमइ तिरपित किसनमां
फूल लेले मलिया नितराल पहुँचलइ
एका एकी नउआ अउ कुम्हरो अइलइ
तम्बोली पान लेले भाट भट भेंटइलइ
मिसिर बाबा शुभ-शुभ बांचथ बचनमां
धरऽ तनी धीर धानी कटऽ दा धनमां
पूरा करब हम सपरल सपनमां
मगर अपन घरनी के समझावे लखनमां
मत हदिया गढ़ा देबो दुनूं कान सोनमां
घर जा किसइनी से फुसके किसनमां
धियादान करवे हम सोभत अँगनमां
बजतइ जोधड़धाय सिंछा पचबजनमां
सुन-सुन मलकिनियाँ