उतर रहल हे सबके पानी / जयराम दरवेशपुरी
रंग रंगीला
रोल कटऽ हे
भइया जी के
बोल कटऽ हे
आसमान
हिलड़ा हथिअइले
शासन डावांडोल लगऽ हे
प्रजातंत्र के
सभे मंत्र ई
अप्पन यंत्र से चाट रहल हे
जाति-पांति के
रूप घिनउना
खूनी खंजर डांट रहल हे
भैंसासुर
उमताल फेन हे
ओकरा भिर अब के सटऽ हे
भैंसासुर के
देखते मातर
दुबक गेली दुर्गा महरानी
लोर में डुबल
हे बिहार ई
उतर रहल हे सबके पानी
बिजली नहर
के बात न पूछऽ
खून से धरती रोज पटऽ हे
आतंकी के
पीठ ठोक के
अप्पन रोटी सेंक रहल
बेधल मन
गंगा मइया अब
आदि शक्ति से पूछ रहल हे
असुर राज के
लोक लाज न´
परतिष्ठा हर रोज घटऽ हे
शोक में डूबल
निरीह जनता
आँख अपन न´ खोल रहल हे
घेरि रहल हे
घुप्प अन्हरिया
पिप्पर जइसन डोल रहल हे
भूखल जनता
के काटइ ले
रोज नया तरवार बंटऽ हे
रावन कंस
बकासुर जइरान
बाहुबली जब मारल गेलइ
कहिया न´
उत्पाती टिकलइ
मानवता उवारल गेलइ
अब ई पागल
कुत्ता बन के
न´ मालुम कब तक काटऽ हे।