उदय हो गये जैसे घर में / हनुमानप्रसाद पोद्दार

उदय हो गये जैसे घर में कोटि-कोटि नीले शरदिन्दु।
देख नंदरानी के उर में उमड़ा दिव्य सुखामृत-सिन्धु॥
कैसी अतुलनीय सुन्दरता! कैसा सुर-मुनि-मोहन रूप।
कैसी निकल रही सुषमा-‌आभा नख-सिख से परम अनूप।

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.