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उनकी आँखों के ख़्वाब क्या कहिये / धीरेन्द्र सिंह काफ़िर
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उनकी आँखों के ख़्वाब क्या कहिये
देखते हैं जनाब क्या कहिये
शोखियाँ भी तो हैं सुभान- अल्लाह
और उसपे हिज़ाब क्या कहिये
उसके लब हैं कि दो सुराही हैं
ऐसे जैसे शराब क्या कहिये
गुल की ख्वाहिश कि ज़ुल्फ़ उनकी हो
खूबियां बे-हिसाब क्या कहिये
चाँद भी है वो चांदनी भी है
हुस्न की वो किताब क्या कहिये
आइये तो नक़ाब रखियेगा
दीन- दुनिया ख़राब क्या कहिये