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उनसे मिलने की आस बाकी है/ जहीर कुरैशी
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					उनसे मिलने की आस बाकी है
ज़िन्दगी में मिठास बाकी है
रोज़ इतने तनाव सह कर भी
मेरे होंठों पे  हास  बाकी है
क्या बुझेगी नदी से प्यास उसकी
जिसमें सागर की प्यास बाकी है
आग लगने में देर है केवल
सबके मन में कपास बाकी है
ये कृपा कम नहीं है फ़ैशन की
नारी तन पे लिबास बाकी है !
रोज़ रौंदी  गई  है  पैरों  से
अपनी  जीवट से घास बाकी है
अस्त्र—शस्त्रों में वो नहीं ताकत
वो जो शब्दों के पास बाकी है.
	
	