भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उमड़ती नदी आज जज़्बात की / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उमड़ती नदी आज जज़्बात की
हुई बेमज़ा रात बरसात की

न हमदर्द कोई मिला सामने
लगी है झड़ी खूब आफ़ात की

करे जब भी दिल आप आ जाइये
नहीं कोई रुत है मुलाक़ात की

मिले दिल से दिल कोई कम तो नहीं
ज़रूरत नहीं कोई सौग़ात की

बना ग़र लिया दोस्त दिल से कोई
न फिर सोचिये उसकी औकात की

पलट कर नहीं देखता जो कभी
उसे क्या खबर अपने हालात की

खड़ा रब हमारे अगर साथ तो
करें फ़िक्र क्यों हम किसी बात की