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उसके हर ज़ुल्म को क़िस्मत का लिखा कहते हैं / सिया सचदेव

उसके हर ज़ुल्म को क़िस्मत का लिखा कहते हैं
जाने क्या दौर है, क्या लोग हैं क्या कहते हैं

है इबादत किसी इंसां से मोहब्बत करना
जाने क्यूँ लोग मोहब्बत को ख़ता कहते हैं

और होंगे जिन्हें क़िस्मत से नहीं कोई उम्मीद
मुझको उसपर है य़कीं जिस को ख़ुदा कहते हैं

मांगना भीख गवारा नहीं खुद्दार हूँ मैं
मेरी खुद्दारी को क्यूँ लोग अना कहते हैं

कारवां वालों को इंसान की पहचान नहीं
जिसने भटकाया उसे राहनुमा कहते हैं

उनका अंदाज़े सितम भी है बहुत खूब सिया
ज़हर को ज़हर नहीं कहते दवा कहते हैं