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ऊँट / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
ऊँट-ऊँट उठले ही जाय
रेगिस्ताने मेॅ दिखलाय
पीठी पर पहाड़ छै
सर्दी लगै नै जाड़ छै
पानी पियै नै कै-कै दिन
एक दू, तीन, चार, पाँच, छो गिन
गर्दन बगुला रं ही उच्चोॅ
पूँछ मतुर बुच्चोॅ-बुच्चोॅ
बालू पर की करै कमाल
मलकी-मलकी चलै छै चाल
नै तिनसुकिया, नै धुलियान
ई जहाज बालू रोॅ यान
सूप डंगावोॅ या कोय टीन
भागथौं नै ई, भेद महीन
जौनें कहतै भेद महीन
गनेॅ नै पड़तै एक, दू, तीन ।