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एकरा त लीखल छै मुक्का के माएर / विजेता मुद्‍गलपुरी

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हरदम बेमतलब के मुँहे पर गाएर
एकरा त लीखल छै मुक्का के माएर

बाते नै मानै छै, हरदम ई कानै छै
सब के बोलाय के बिछौना पर फानै छै
गुड्डी ले, गुल्ली ले, बैलुन ले रूसै छै
लैये के छोड़ै छै जेजीद के ठानै छै

लागल टरक्टर के चाटै छै टाएर
एकरा त लीखल छै मुक्का के माएर

बर-बर बर बोलै छै, केवाड़ी झोलै छै
पढ़ै ले बैठल त मुँहें नै खोलै छै
झिकटा, त कागज, त पिन्सौल चिबाबै छै
पिन्सील कखनियों सियाही में घोलै छै

लीखै छै एक्को नै बोलै छै चाएर
एकरा त लीखल छै मुक्का के माएर

पत्ता पर धूला छै, तन्नी गो चुल्हा छै
ईंटा के सोफा पर दुल्हिन छै दुल्हा छै
टीना के, मिट्टी के, कागज के बर्त्तन छै
मिट्टी के पूरी जिलेबी रसगुल्ला छै

कद्दू के लत्तर छै लैने उखाएर
एकरात लीखल छै मुक्का के माएर

कागज के छीटै छै, फेर ओकरे लूटै छै
खेले में अप्पन जौराती के पीटै छै
लागै छै अभिए से राजनीति सीखै छै
केकरी से जूटै छै, केकरो से टूटै छै

हल्ला मचैने छै सौंसे दुआएर
एकरा त लीखल छै मुक्का के माएर