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एक अँजुरी धूप / यतींद्रनाथ राही
Kavita Kosh से
एक अँजुरी धूप आँगन
भर गया उल्लास
एक पँखुरी मुस्कराई
लिख गयी मधुमास।
लहर मचली
ज्वार उमड़े
एक आहट पाँव
चाँदनी में घुल गयी वह
एक क्षण की छाँव
एक पल की बात गूँगी
कल्पशत आभास।
एक क्षण
स्पर्श कोमल
बज उठे तन-तन्त्र
एक स्वर वंशी निनादित
सोम का अभिमन्त्र
एक झुकते पलक
सिमटे
आक्षितिज आकाश।
एक शब्दातीत विस्मृति
पलक भर संयोग
एक क्षण का डूबना
सौ जन्म का सुख-भोग
एक
अमृत बूँद पावन
मुक्ति का विश्वास।